पथरीले कंटीले रास्ते - 12

  • 636
  • 222

पथरीले कंटीले रास्ते    12   रविंद्र को झाङू दिखाकर वह कैदी तो चला गया पर रविंद्र काफी देर गुमसुम सा खङा सोचता रहा कि क्या करे , कहाँ से शुरु करे । हर तरफ गर्दे के अंबार लगे थे । धूल मिट्टी से अटा पङा था पूरा कमरा । हालांकि कमरा बहुत छोटा सा था । मुश्किल से 8 *10 या 11 का होगा पर उसने तो कभी कसम लेने को भी झाङू न उठाई थी । कभी नौबत ही न आई थी । बी जी खुद ही सारा दिन लगी रहती । ठीक होती तब तो उन्होंने ही