कर्म से तपोवन तक - भाग 7

  • 648
  • 303

अध्याय 7 राजमहल के द्वार पर प्रतीक्षा करते गालव के संग माधवी चुपचाप चलने लगी।  " तुम दुखी नजर आ रही हो माधवी। हम एक वर्ष पश्चात मिल रहे हैं फिर भी? " "तुम स्त्री नहीं हो न गालव, पिता भी तो नहीं हो । वरना समझते यह पीड़ा। यह पुत्र से बिछड़ने की मर्मान्तक चोट। " गालव ने इस समय माधवी को और अधिक व्याकुल करना उसकी सोच में बाधा डालना उचित नहीं समझा । माधवी को लिवा लाने के लिए जब गालव ने भोजपुर के राज महल की ओर प्रस्थान किया था उसके 1 महीने पहले से वह