कर्म से तपोवन तक - भाग 5

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अध्याय 5 गालव के साथ उदास खिन्न सी माधवी चली जा रही थी। राजमहल पार करते ही दोनों गंगा तट पर आये और गंगा के जल में पैर डुबोकर बैठे रहे। गंगा की लहरों के स्पर्श ने जैसे माधवी का संताप हर लिया। गंगा भी तो आठ पुत्रों को जन्म देकर मातृत्व सुख से वंचित रही। अंतर केवल इतना है कि गंगा ने स्वेच्छा से शांतनु का वरण कर उनसे उत्पन्न पुत्रों का त्याग किया । जबकि माधवी को परिस्थिति वश ऐसा करना पड़ रहा है ।  "क्या सोच रही हो माधवी । चलो चलते हैं। मार्ग लंबा है और