अब और सनबर्न नहीं चाहिए - 1

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नीलम कुलश्रेष्ठ एपीसोड --1 इस घर में आज भी सुबह-सुबह नर्म हवा के झोंके पर्दों को थरथराते हैं । आज भी बरामदे में नीचे के बाईं तरफ़ करे नीचे पेड़ों की टहनियों से छनती धूप अपना अक्स बनाती है। आज भी इस घर में डेरीवाला घंटी बजाकर दूध देता है। बस इन थरथराते पर्दों की सूरज की किरणों की जैसे रूह फ़ना हो गई है। सामान से भरे इस घर में एक कमरे से दूसरे कमरे में जाओ तो लगता है निःस्तब्ध वीराने में टहल रहे हैं। घर की बची हुईं हलचलें स्पन्दनहीन लगती हैं, अजीब-सी मरघटनुमा खामोशी में लिपटी