२४ अप्रैल २४ की सुबह लगभग साढ़े दस बजे सात समंदर पार खाड़ी देश से आभासी दुनिया की मुँहबोली बहन का फोन आया। प्रणाम के साथ उसके रोने का आभास हुआ, तो मैं हतप्रभ हो गया है। जैसे तैसे ढांढस बंधाते हुए रोने का कारण पूछा तो उसने किसी तरह रुंधे गले से बताया कि भैया, आपके स्नेह आशीर्वाद को पढ़कर खुशी से मेरी आंखे छलछला आई, मैं निःशब्द हूं, बस रोना आ गया, समझ नहीं पा रही कि मैं बोलूं भी तो क्या बोलूं? रोते रोते ही उसने कहा यूँ तो आपकी आत्मीयता का बोध मुझे कोरोना काल से