1.मैं यह सोचकर उसके दर से उठी थीकि वह रोक लेगा मना लेगा मुझको ।हवाओं में लहराता आता था दामनकि दामन पकड़कर बिठा लेगा मुझको ।क़दम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थेकि आवाज़ देकर बुला लेगा मुझको ।कि उसने न रोका न मुझको मनायान दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया ।न आवाज़ ही दी न मुझको बुलायामैं आहिस्ता - आहिस्ता बढ़ती ही आई।यहाँ तक कि उससे जुदा हो गई मैंजुदा हो गई मैं, जुदा हो गई मैं ।2.कहाँ जाते हो रुक जाओ तुम्हे मेरी कसम देखोमेरे बिन चल नही पाओगेजानम दो कदम देखो3.इश्क़ जब बेहिसाब होता हैहिज्र भी लाजवाब होता