उजाले की ओर –संस्मरण

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================== नमस्कार स्नेही मित्रों आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है, आप सब आनंद में हैं | इसीलिए तो यहाँ पर आपकी अनुपस्थिति में भी उपस्थिति महसूस होती है| हम सब एक डोर से जो बंधे हैं, जानते तो हैं, महसूस भी  करते हैं---उस स्नेह-डोर को जो एक सिरे से हम सबको बाँधती चली जाती है, जिसकी छुअन से हम किसी दूसरी दुनिया के अंग हैं, ऐसा महसूस करने लगते हैं|यही दुनिया हमें पुकारकर कहती है, तुम किसी बंधन में नहीं हो क्योंकि मुक्ति ही स्नेह है, प्रेम है | भला प्रेम किसी वृत्त में कैसे भटक सकता है ? हवाओं