कंचन मृग - 34. चन्द दुःखी हुए

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34. चन्द दुःखी हुए- महाराज पृथ्वीराज अपने मन्त्रणा कक्ष में आ चुके थे। उन्होंने महोत्सव की छिटपुट लड़ाइयों को लुका-छिपी का खेल कहकर अपना असन्तोष प्रकट किया। चामुण्डराय और कदम्बवास यद्यपि दो बार महोत्सव की सेनाओं से आमने-सामने हो चुके थे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी। दुर्ग को नष्ट कर पाना अत्यन्त कठिन था। शिशिरगढ़ विजय से चामुण्डराय जितने उत्साहित थे उतना ही वेत्रवती के झाबर की असफलता से दुःखी। ‘अब हम निर्णायक युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं महाराज’ चामुण्डराय ने कहा। संयमाराय ने इसका समर्थन किया। ‘निर्णायक युद्ध के लिए पूरी शक्ति के साथ आक्रमण करना