33. जूती पिन्हाइए- कान्यकुब्जेश्वरी अत्यन्त उद्विग्न हैं। उन्हें आचार्य श्रीहर्ष प्रतिद्वन्द्वी दिखाई पड़ते। यद्यपि महाराज महारानी का सम्मान करते थे पर वे श्रीहर्ष की बात भी नहीं टालते थे। यही बात महारानी को अखरती। उन्हें लगता कि श्री हर्ष भविष्य में उनके विकास में बाधक हो सकते हैं। कभी-कभी वे महाराज को भी तोलने का प्रयास करतीं। उन्हें लगता कहीं श्रीहर्ष का पलड़ा भारी न पड़ जाए। उन्होंने कई आचार्यो, व्यक्तियों को जाँचा पर कोई श्री हर्ष को पदचयुत करने में समर्थ होगा ऐसी सम्भावना उन्हें नहीं दिखी। उनकी उद्विग्नता बढ़ती जा रही थी। उन्हें पता चला कि आचार्य श्री