कंचन मृग - 30. प्राण दान दे चुका हूँ

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30. प्राण दान दे चुका हूँ- महाराज परमर्दिदेव ने अपने राज कवि जगनायक को बुलवाया। उनसे विमर्श हुआ। महाराज ने माण्डलिक को मनाने की बात कही। जगनायक बात और तलवार दोनों के धनी थे। पर राजनीतिक षड्यन्त्र में उनकी रुचि नहीं थीं। वे भी माण्डलिक को निष्कासित करने के पक्ष में नहीं थे। पर महाराज की आज्ञा का सक्रिय विरोध भी उन्होंने नहीं किया। वे माण्डलिक के स्वभाव को जानते थे। माण्डलिक गम्भीर प्रकृति के बात के पक्के थे। वे निर्णय सोच विचार कर लेते। एक बार निर्णय कर लेते तो उस पर अडिग रहते। उन्हें महोत्सव से निष्कासित किया