21. धौंसा बजा- शिशिर गढ़ पर वत्सराज पुत्र पुरुषोत्तम शासन कर रहे थे। वत्सराज संस्कृत में श्लोक रचते थे। उन्होंने ‘रूपक शतकम्’ की रचना की थी। पुरुषोत्तम बात के धनी थे। उनकी प्रकृति गम्भीर थी। उन्होंने महोत्सव की प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने दी। पर यह ऐसा अवसर था जब माण्डलिक और उदयसिंह गाँजर क्षेत्र में कान्यकुब्जेश्वर का कर उगाहने में लगे थे। तालन और देवा भी उन्हीं के साथ थे। महोत्सव से माण्डलिक के निष्कासन से उन्हें कष्ट हुआ था पर आल्हा द्वारा शिशिरगढ़ रुकने में असमर्थता व्यक्त करने पर उन्हें लगा था कि वे अकेले हो गए हैं।