कंचन मृग - 13-14. मेरी यात्रा को गोपनीय रखें

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13. मेरी यात्रा को गोपनीय रखें-मध्याह्न भोजन के पश्चात महाराज जयचन्द अलिन्द से निकलकर उद्यान का निरीक्षण कर रहे थे। उद्यान की हरीतिमा नेत्रों को प्रीतिकर लग रही थी। इसी बीच प्रतिहारी ने आकर निवेदन किया-‘महाराज, एक साधु आप से मिलना चाहते हैं। उन्होंने अपना अन्य कोई परिचय नहीं दिया। कहते हैं कि महाराज से ही निवेदन करूँगा।’‘यहीं ले आओ।’‘कुछ क्षण में साधु प्रतिहारी के साथ उपस्थित हुए। महाराज साधु को लेकर अलिन्द में आ गए। महाराज के संकेत पर सेविकाएँ हट गई। सेविकाओं के हटते ही साधु ने जटा हटा दी। माहिल ने महोत्सव की नवीनतम जानकारी दी और