कंचन मृग - 5. सत्ता को कभी-कभी निर्मम होना पड़ता है

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5. सत्ता को कभी-कभी निर्मम होना पड़ता है- महारानी मल्हना मूर्च्छित हैं। सेविकाएं उन्हें सँभालने का प्रयास कर रही हैं, उनकी आँखों से निरन्तर अश्रु बह रहे हैं। चित्रा भी पहुँच कर पंखा झलने लगती है। कुछ क्षण में महारानी की आँख खुलती है। उसी समय मन्त्रिवर माहिल प्रवेश करते हैं। महारानी की प्रश्नवाचक मुद्रा माहिल को अन्दर तक बेध देती है पर वे उत्तरीय सँभालते हुए बोल पड़ते हैं- ‘महाराज ने उचित ही किया महारानी। एक राज्य में दो सत्ता केन्द्र नहीं हो सकते जैसे एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती।’ महारानी ने माहिल पर एक बेधक