1.इतना चाहती थी मुझको कि मेरे गमो का बोझ,ओ मुझे तनहा कभी ढोने नही दी।मेरे हर दर्द में मरहम बन के रही,मेरे गालो को मेरे अश्को से कभी धोने नही दी।नही दी मौका ओ कभी मुझे टूट के बिखरने का,इसीलिए तो आज छोड़ के गई तो भी...जता के हक अपना ओ मुझे आज भी किसी का होने नही दी।2.अधूरा था सफर उस बिन...काश! पकड़ के हाथ मेरा हमसफ़र बन गया होता मेरा।।3.काश, मेरी मुहब्बत ऐसी होती...जब भी होता तनहा मैं सीने से मुझे लगाती ओ,गम के लम्हो में ओ मुझपे बदरी बन के छा जाती ओ,कुछ बाते ओ लबो से