कंचन मृग - 1 अपराध हुआ रानी जू

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1. अपराध हुआ रानी जू ‘चित्ररेखा’ , चित्ररेखा दौड़ती हुई चन्द्रावलि के सामने अपराधी की भाँति आकर खड़ी हो गई। उसकी खड़े होने की मुद्रा से चन्द्रा को हँसी आ गई। उसने पूछा ‘आज इतने श्रृंगार की आवश्यकता कैसे पड़ी, चित्रे?’ चित्रा की आँखें ऊपर न उठ सकीं। चित्रा चन्द्रा की मुँहबोली सेविका होने के साथ ही अभिन्न सहेली भी थी। चित्रा के मन की बातें चन्द्रा पढ़ लेती थी और चित्रा से भी चन्द्रा के अन्तर्मन की बात छिपती न थी। सावन का महीना लग चुका था। विवाहिताएं मैके आकर किलोल करने लगीं थीं। चित्रा के माता-पिता का देहान्त