*पम्परागत मूल्यों एवं मान्यताओं के परिपेक्ष्य में, अतुलनीय है यह काव्य-संग्रह*(समीक्षक- नन्दलाल मणि त्रिपाठी 'पीताम्बर',गोरखपुर) "मुरारी की चौपाल" अतुल जी की अविस्मरणीय छंदमुक्त आकर्षक, प्रभावी एवं प्रासंगिक संग्रह है,जो चौवन महत्वपूर्ण समसामयिक एवं संदेशपरक अभिव्यक्तियों में समाहित है। प्रथम कविता "सच यही है" में कवि ने मां शारदे की चरण-वन्दना अपने अलग अंदाज में की है, जिनके बिना हर साहित्यिक गतिविधि अपूर्ण मानी जाती है। मां शारदे की वंदना एवं उनकी आराधना कवि ने निम्न शब्दों में की है-*"बना रहा जड़/ हो अज्ञानता के वशीभूत, अधूरा रहता है हर साहित्यिक अनुष्ठान/उनके बिना।"*कवि की भावाभिव्यक्ति,जो भारतीय ग्रामीण परिवेश की चौपाल परम्परा