पर-कटी पाखी - 5. बात उस दिन की.

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5. बात उस दिन की. -आनन्द विश्वास आज पिंजरे भी वही हैं,अस्पताल भी वही है और उन पिंजरों के टाँगने के स्थान भी वही हैं। सब कुछ तो वही है। बिलकुल वैसा का वैसा ही, पहले जैसा ही। पर हाँ, बदल गये हैं तो बस, पिंजरे के अन्दर के पक्षी, और बदल गये हैं पाखी और पलक के आदर्श, सिद्धान्त और उद्देश्य भी। पहले इन पिंजरों में कभी तोते हुआ करते थे। जो हर किसी आते-जाते को राम-बोलो,राम-बोलो,बोला ही करते थे और जिनकी प्यारी-प्यारी मधुर कर्ण-प्रिय आवाज को सुनकर, हर किसी के चहरे पर हल्की-सी स्मित या मुस्कान तो आ