प्रकृति के साथ इंसानियत की जरूरत

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यह कैसी विडम्बना है कि आधुनिकता की आंधी में दम तोड़ती जा रही इंसानियत के आज इंसानों को इंसानी कद्र करने की सलाह, सुझाव, संदेश, प्रवचन, भाषण का सहारा लेना पड़ रहा है। और पड़े भी क्यों न? जब घर, परिवार से होते हुए इंसानी सभ्यता का पटाक्षेप जितनी तेजी से हो रहा है, उससे तो अब यह सोचना पड़ता ही है कि कहीं इंसानियत इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर भविष्य में शोध का विषय बनने से अब कितनी दूर है। इंसान खुद को इंसान होने की सच्चाई से दूर भाग रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमारे आपके परिवार