अध्याय पन्द्रह तमन्ना थी आज़ाद वतन हो जाए ! लखनऊ से निकल कर बेगम हज़रत महल, मम्मू खाँ, बिर्जीस क़द्र तथा विश्वास पात्र सैनिकों के साथ आकर बौंड़ी में मुकीम हुईं। राजा हरदत्त सिंह ने उनका स्वागत किया और सुरक्षा की व्यवस्था की। राजा बौंड़ी की सेना में ऊँट सवार और सत्रह तोपें भी थीं जिनमें तेरह किले के बाहर लगी थीं। बेगम ने यहीं से विद्रोहियों का नेतृत्व किया। उन्होंने अपने विश्वस्त राजाओं को बौंड़ी बुलाकर परामर्श किया। राजा हरदत्त ने चहलारी नरेश बलभद्र की प्रशंसा कर विद्रोही सेना की कमान उसे सौंपने की बात की। बेगम प्रभावित हुईं।