वाजिद हुसैन की कहानी अभी वह बच्ची ही थी कि उसके पिता की मृत्यु हो गई। वह दस साल की भी नहीं हुई थी कि उसकी मां चल बसी। वह अपने ताऊ के घर में अनाथ रह गई थी, जो कश्मीर की खूबसूरत वादियों के बीच एक छोटे से एकांत गांव में अपने बीवी-बच्चों के साथ रहता और वहां की मिट्टी में होने वाले फलों पर गुज़ारा करता था। रूही के पिता मरे तो उसके लिए अपने नाम और खुबानी और सेब के पेड़ों के बीच खड़ी एक झोपड़ी के अलावा और कुछ नहीं छोड़ गए। अपनी मां से उसे