निरुत्तर - भाग 4

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विशाखा अब आज़ाद थी। उसे तो कामिनी के जाने का ज़्यादा अफ़सोस भी नहीं था। दो-तीन दिन के बाद ही वह अपने पति प्रकाश के साथ उसके मायके आई। दरवाज़े पर दस्तक की आवाज़ सुनते ही विशाखा की भाभी मधु ने लपक कर दरवाज़ा खोला। विशाखा और प्रकाश को अपने सामने देखते ही मधु के होश उड़ गए। उसने कहा, “अरे दीदी अचानक?” “हाँ भाभी, मम्मा पापा की बहुत याद आ रही थी सोच रही हूँ थोड़े दिनों के लिए उन्हें मेरे साथ ले जाऊँ। उन्हें भी थोड़ा चेंज मिल जाएगा।” विशाखा के बोले यह शब्द काफ़ी थे, मधु का