उजाले की ओर –संस्मरण

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=================== स्नेहिल नमस्कार प्यारे मित्रों हर दिन छोटी-बड़ी बातें होती रहती हैं | जीवन का न तो कोई भी पल खाली रहता है न ही कोई भी दिन अथवा कोई भी मन का कोना | मन तो ऐसा कंप्यूटर है जो भरा ही रहता है | अब जब कोई भी चीज़ अधिक भर जाए, उसमें कुछ इतना ठुँसने लगे कि भीतर ही भीतर युद्ध छिड़ने लगे, वहाँ कुछ जगह तो बनानी ही पड़ती है | कुछ चीज़ों को खाली करना पड़ता है, कुछ चीज़ों को समेटना पड़ता है तब कहीं जाकर कुछ खुली साँस आ सकती है |  अपने इसी