आँच - 10 - माँ के दूध की लाज तो रखो !

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अध्याय दस माँ के दूध की लाज तो रखो !सन 1852 में कम्पनी ने एक नए तरह का कारतूस भारतीय सेना में प्रसारित किया। पहले के कारतूसों को हाथ से तोड़ना पड़ता था पर नए कारतूसों को दाँत से काटना पड़ता था। इन कारतूसों में चर्बी का उपयोग होता था जो प्रायः सुअर और गाय की हुआ करती थी। जब तक भारतीय सैनिकों को इसका पता नहीं चला वे दांत से काटकर कारतूसों का प्रयोग करते रहे। अँग्रेज अधिकारी धीरे धीरे इन कारतूसों का प्रचलन बढ़ाते रहे।बैरकपुर के पास कारतूस बनाने का एक कारखाना खोला गया। वहाँ छावनी थी ही।