गाँव की लड़की का अर्थशास्त्र

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गाँव की लड़की का अर्थशास्त्र विजय कुमार तिवारी गाँव में पहुँचे हुए कुछ घंटे ही बीते हैं,घर में सभी से मिलना-जुलना चल रहा है कि मुख्य दरवाजे से एक लड़की ने प्रवेश किया और चरण स्पर्श की।  तुरन्त पहचान नहीं सका तो भाभी की ओर प्रश्न-सूचक निगाहों से देखा। "लगता है, चाचा पहचान नहीं पाये,"थोड़ी मुस्कराहट के साथ उसने बीच में ही टोक दिया और बोली,"मैं श्यामा, आपके हीरा भैया की छोटी बेटी।" "अरे, तू इतनी बड़ी हो गयी?"किंचित आश्चर्य और प्रसन्नता से उसका माथा सहलाया और आशीर्वाद दिया,"खूब खुश रहो। कैसी हो तुम और तुम्हारी दीदी लोग कैसी है?"