वैचारिक ऊर्जा

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वैचारिक ऊर्जा जीवन दर्शन कि सकारात्मकता का बोध है जो व्यक्ति व्यक्तित्व एव जीवन जन्म की सार्थकता को विचारों के निर्माण से लेकर उसके परिणाम की ऊर्जा उत्साह ईश्वरीय चेतना का सत्त्यार्थ व्यखित करती है।मृदुलदुकीर्ति जी ने वैचारिक ऊर्जा के स्रोत एव उसके स्रोत संवर्धन संरक्षण को सही अर्थों में व्यखित किया है उन्होंने (युजुर्वेद )के #आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:# को उद्घृत करते हुए स्पष्ठ किया है सभी दिशाओं एव दशाओं से शुभ विचारों का प्रस्फुटन होता है चाहे परिवेश परिस्थिति नकारात्मक हो फिर भी उससे कही न कही किसी न किसी स्वरूप में सकारात्मक एव नकारात्मक दोनों