आँच - 2 - यह कोठा भी नख़्ख़ास है !

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अध्याय दोयह कोठा भी नख़्ख़ास है ! तालियों की गड़गड़ाहट, सिक्कों की बौछार के बीच लचकभरी बेधक आवाज़ । महफ़िल झूम उठी जब उसने छेड़ा- मोरा सैयां बुलावे आधी राति, नदिया बैरन भई।थिरकते पाँवों के बीच घुँघअओं की रुनझुन। हर एक की आँखें उसी पर गड़ी हुई। तेरह साल की उम्र। कसकती आम के फाँक सी आँखें। शरीर पर जैसे सुनहला पानी चढ़ा हुआ। सौन्दर्य की प्रतिमा सी। थिरकती तो लगता लास्य की नेत्री लोगों को भाव, लय और ताल सिखा रही है। यह आयशा थी। नदिया बैरन भई... नदिया बैरन भई... नदिया बैरन भई… उतारती हुई। उसी के साथ