काव्य लता

  • 729
  • 297

1.मेरी यादें मेरा चेहरा मेरी बातें रुलायेंगीहिज़्र के दौर में गुज़री मुलाकातें रुलायेंगीदिनों को तो चलो तुम काट भी लोगे फसानों मेजहाँ तन्हा मिलोगे तुम तुम्हे रातें रुलायेंगी2.मैं फिर से, ठीक तेरे जैसे की तलाश में हूँ... गलती कर रही हू लेकिन होशोहवास में हूँ…3.बहुत मशरूफ हो शायद, जो हमको भूल बैठे हो न ये पूछा कहाँ पे हो, न ये जाना कि कैसे हो ?4.हो गये है जो खिलाफ अपनी ही हवा के हमक्यू बैठे हैं गैर दर पर यू दिया जला के हमसुबह में जागते ही दुखने लगता है बदन मेराजाते हैं कही क्या रात खुद को सुला