अनोखी सभा

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1. अनोखी सभा आधी रात का समय था। एकदम शान्त सा वातावरण लग रहा था, लेकिन कुछ आवाजें जो नदी तट से आ रही थी, मानों कोई मीटिंग चल रही हो। मैंने बिस्तर से उठकर देखा, वहाँ तो सचमुच मीटिंग ही चल रही थी। नदी तट के सारे वृक्ष, कलकल बहती नदी, दूरभाष से सूरज दादा, आसमान से चंदा मामा, टिमटिमाते तारे, धरती माता, जंगल के सारे जीव - जन्तु उस अनोखी सभा में अपने - अपने विचार व्यक्त कर समस्याओं का हल खोज रहे थे। आहत मन से वृक्ष बोल रहा था कि- "काटो जंगल, करो विकास की नीति