झिलमिल सपने

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1.देख सकता हूं मैं दूर तलक।है बाज सी ये मेरी नजर।।कहीं छिपा नहीं कुछ भी हमसे।जमी हो या चाहे हो फलक।। रखती हूं सबसे दोस्ताना व्यवहार।दिलों को जीतने का है मुझ में हुनर।।लिखती हूं अल्फाजों में दिल की दास्तां।में दिन-रात ख्वाबों में ही करती हूं सफर।।कहते हैं लोग मुझे काव्य संपदा।कल्पना लोक में है मेरा शहर।। 2.कांच के इक खिलोने सा, रहा है टूटता ये दिल। रहा चलता मुसाफिर सा, मिली मुझको नही मंजिल।मुश्किलों से भरी राहें बढाती ही गई उलझन। मेरी कश्ती वहां डूबी जहां था दिख रहा साहिल। 3.तमन्ना चाहतों की वो, सजा हर साल रखते है।मुझे मालूम