कहां गए वो बचपन के दिन.....

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वो हसीं ठिठोली के दिन, वो खेलने कूदने के दिन, वो मस्ती भरे हुए दिन न जाने कहा खो गए। जब व्यर्थ की कोई चिंता नहीं थी, जब हमेशा सपनों के ऊंचे ऊंचे महल बनाए जाते थे। जब किसी भी समस्या का हल कुछ ही पलों में निकल आता था, जब माँ की डांट भी प्यारी लगती थी। आज बहुत याद आते हैं वो मस्ती भरे हुए दिन जब हर समस्या को यूं ही खेल खेल में भूला देते थे। मन चाहता है कि एक बार फिर उन दिनों को जीया जाए। उन क्षणों को फिर से एक बार अपने वर्तमान