नृशंस सभ्य समाज की जंगलों से आदिवासियों को खदेड़ने की साज़िश - समीक्षा

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[ नीलम कुलश्रेष्ठ ] उस दिन मुम्बई के अपने घर में उपन्यास 'कालचिती को पढ़कर आदिवासियों की हालत जान कर दिल दहल रहा था। मैं किसी ज़रूरी काम से सड़क तक आ गई थी, ख़ामख़्याली में ये पुस्तक साथ में आ गई थी. अचानक मेरी नज़र में सड़क पार के बड़े'आर -सिटी मॉल' पर गई, अपने हाथ के शेखर मल्लिक के उपन्यास 'कालचिती ' की पुस्तक पर गई, सच मानिये मेरा हाथ में बुरी तरह झुरझुरी होने लगी थी ।--- पीछे की आलीशान बिल्डिंग, सामने भव्य मॉल, सामने सड़क पर दौड़ती उम्दा गाड़ियां और जंगल में रहने वाली उस दुनिया