श्री द्रौपदी जी

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द्रोणाचार्यको गुरुदक्षिणा देनेके लिये अर्जुनने द्रुपदको पराजित कर दिया। यद्यपि आचार्य द्रोणने द्रुपदको पाशमुक्त करके केवल आधा राज्य लेकर मित्र बना लिया, परंतु वे इस अपमानको भूल न सके। द्रुपदने द्रोणसे बदला लेनेके लिये यज्ञ करके संतान प्राप्तिका निश्चय किया। कल्माषी नगरीके तपस्वी, वेदज्ञ ब्राह्मण उपयाजकी उन्होंने अर्चना की। उनको प्रसन्न करके प्रार्थना की कि द्रोणको मारनेवाले पुत्रकी मुझे प्राप्ति हो, ऐसा यज्ञ करायें। उपयाजने प्रार्थना अस्वीकार कर दी। महाराजने पुनः एक वर्ष सेवा की। इससे प्रसन्न होकर उन विप्रदेवने कहा—'मैंने अपने अग्रजको भूमिमें पड़ा पका फल उठाकर ग्रहण करते एक बार देखा है। मैंने इससे समझा है कि वे