साथिया - 36

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" जज साहब...! साँझ बोली तो अक्षत ने पलटकर देखा और अगले ही पल साँझ एकदम से उसकी तरफ दौड़ पड़ी और उसके सीने से लग गई। अक्षत को विश्वास ही नहीं हुआ था हुआ एक बार को की साँझ उसके इतने करीब है" साँझ।" अक्षत ने धीरे से कहा। साँझ ने उसकी तरफ नहीं देखा। "सांझ..!" अक्षत ने कहा। "प्लीज जज साहब कुछ पल बस ऐसे ही रहने दीजिए। आप की आंखों में देखूंगी तो शायद फिर कुछ बोल नहीं पाऊंगी एक अलग सा जादू है आपकी आंखों में..!" साँझ ने कहा तो अक्षत के चेहरे पर हल्की सी