वृद्ध आश्रम में आ कर मैने खुद को व्यस्त करने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन रह रह कर बेटे और बहू का व्यवहार मेरे लिए नासूर बन गया। आश्रम के पुस्तकालय में बैठे कर अपना मन पुस्तकों में लगाया लेकिन नही। फिर मैंने यह भी सोचा, क्या होगा अतीत को सोच सोच कर।अक्सर कोइ सेवा दार पूछ भी लेता,, बाबा आप बहुत ही परेशान रहते हैं क्या बात है,, लेकिन मै उन सबकी बातें सुन कर भी अनसुनी कर देता,, पूजा पाठ में भी मन लगाने का प्रयास करता लेकिन सब बेकार।कभी कभी मै खुद से कहने लगाता, जरूर कोई