संत श्री तुलसीदासजी

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कराल कलिकाल के कपटी प्राणियों का उद्धार करने के लिये आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने गोस्वामी श्रीतुलसीदास के रूपमें अवतार लिया। आदिकवि ने त्रेतायुगमें श्रीरामायण नामक प्रबन्ध महाकाव्य लिखा। जिसकी (श्लोक अथवा रामायण) संख्या सौ करोड़ है। इसके एक-एक अक्षर के उच्चारणमात्रसे ब्रह्महत्या आदि महापापपरायण प्राणी भी मुक्त हो जाते हैं। अब इस कलियुगमें भी उन्हीं श्रीवाल्मीकिजी ने भगवद्भक्तों को सुख प्रदान करने के लिये पुनः शरीर धारण कर भगवान् श्रीरामजी की लीलाओं का विशेष विस्तार किया, श्रीरामचरितमानस आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की। ये गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी श्रीसीताराम के पदपद्मके प्रेमपरागका पानकर सर्वदा उन्मत्त रहते थे और नियम-निष्ठाओंका पालन दृढ़तासे