कलयुग के श्रवण कुमार - 3 - पिता का जन्म

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पिता का जन्म एक एक गुजरता पल मानो दिनों की तरह गुजर रहा था , सीने में वज्र समान के अस्थि पंजरों के बीच बाएं तरफ स्थित दिल घोड़े की गति सा बेतहाशा सरपट धड़के जा रहा था। ट्रेन सी आती जाती तेज सांसे । अव्यवस्थित और अनियन्त्रित तेज सांसे । ऐसा लग रहा था कि जैसे मन मस्तिष्क मे तेज उथल - पुथल के बीच ' भयंकर तुफानों सरीखे विचारों की मैराथन सी चल रही थी । व्याग्रता सी हालत में कभी वह चहलकदमी करते फर्श को द्रुत गति से रौंद रहा था , कभी दीवार से सलीके से