मैं तो ओढ चुनरिया 51 जैसे जैसे समय बीत रहा था , वैसे वैसे घर में तैयारियां हो रही थी पर गोद भराई का चढावा देख कर माँ का उत्साह बिल्कुल ठंडा पङ गया था । वे काम कर तो रही थी पर बेमन से । मामू हर रोज आजकल जल्दी आने लगे थे । वे हर रोज आते और पिताजी के सामने बैठ जाते । बीच बीच में कफ सीरप छोटी शीशियों में भरने लगते या फिर चुपचाप बैठे मुँह ताकते रहते । ये मामू जगत मामू थे । वैसे तो ये पिताजी के मामा थे पर