सुरभी बुआ

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                                      सुरभी बुआ रसोई में चूल्हे के सामने बैठी सुरभी बुआ ....और मैं, बस बुआ को ताक रही थी। कुछ तो बुआ का गोरा कशमीरी सेब सा चमकता लाल रंग, आत्मविश्वास की आभा से दमकता भाल. आग की गरमी से  सुर्ख हुआ दमकता चैहरा ...मेरा बस उन्हें एक टक देखते रहने को मन करता।  उस समय मेरी भी उम्र रही होगी कोई दस ग्यारह वर्ष । उस उम्र में  मुझे भी सौन्दर्य को शब्दों में बांधना नही आता था पर आज भी   चाहे जितना  प्रयास कर लूँ उस रूप, उस तेजामय चैहरे की दमक को. उन चमकती आँखों को