सागर के बहते आँसुओं और उनके दुःख का एहसास वैजंती को हो रहा था। वह गलती से हुए उनके उस दर्द को समझ रही थी जो अनजाने में ही उनसे हो गई थी। अपने एक ही हाथ से हाथ जोड़ने की कोशिश करते हुए उसने कहा, “साहब जी हम जानते थे, आप अपनी बेटी को ढूँढते हुए इधर ज़रूर आएंगे।” तब तक सागर की नज़र सुखिया के बनाए सुंदर रंग बिरंगे मिट्टी के बर्तनों पर पड़ गई। उन्होंने उन खिलौनों और बर्तनों को तब ध्यान से देखा तो उनके मुँह से अनायास ही निकल गया, “वाह अद्भुत, कितने सुंदर बर्तन,