सुखिया की आँखों में आँसू थे, उसे दुख था लेकिन अपने हाथों पर उसे विश्वास भी था। वह सब कर लेगी बस यही सोच उसे मजबूती दे रही थी। वैजंती ने अपनी बेटी के पास आकर कहा, “सुखिया अब हमारा क्या होगा बिटिया?” फिर अपने हाथ की तरफ़ इशारा करते हुए आगे कहा, “मैं तो लाचार हूँ, जैसे तैसे घर का काम कर लेती हूँ।” सुखिया ने अपनी माँ को प्यार से निहारते हुए कहा, “अम्मा रो मत, बाबू जी ने मुझे सब कुछ सिखा दिया है। मैं हूँ ना मैं सब कर लूंगी।” वैजंती को नन्ही सुखिया की बातों