शुकदेवजी महर्षि वेदव्यासके पुत्र हैं। इनकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें अनेकों प्रकारकी कथाएँ मिलती हैं। महर्षि वेदव्यासने यह संकल्प करके कि पृथ्वी, जल, वायु और आकाशकी भाँति धैर्यशाली तथा तेजस्वी पुत्र प्राप्त हो, गौरी-शंकरकी विहारस्थली सुमेरुश्रृंगपर घोर तपस्या की। उनकी तपस्यासे प्रसन्न होकर शिवजीने वैसा ही पुत्र होनेका वर दिया। यद्यपि भगवान्के अवतार श्रीकृष्णद्वैपायनकी इच्छा और दृष्टिमात्रसे कई महापुरुषों का जन्म हो सकता था और हुआ है तथापि अपने ज्ञान तथा सदाचारके धारण करनेयोग्य संतान उत्पन्न करनेके लिये और संसारमें किस प्रकारसे संतानकी सृष्टि करनी चाहिये—यह बात बतानेके लिये ही उन्होंने तपस्या की होगी। शुकदेवकी महिमाका वर्णन करते समय इतना स्मरण हो