36.तैयारी महायात्रा की अर्जुन हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की मनोदशा पर विचारकर क्षुब्ध हो उठते हैं। समाज की आश्रम व्यवस्था के अनुसार वे अपने जीवन के चतुर्थ चरण में हैं अर्थात उन्हें संन्यास की तैयारी शुरू करना चाहिए, लेकिन वे हैं कि मोह माया से चिपके हुए हैं। वे महाराज युधिष्ठिर को उनका वास्तविक अधिकार देने के स्थान पर उन्हें वन- वन भटकने को मजबूर कर रहे हैं। वनवास और अज्ञातवास को अवधि पूरी होने के बाद भी महाराज धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह के आगे समर्पण करते हुए पांडवों को उनका राज्य लौटाने से मना कर दिया। स्वयं श्रीकृष्ण शांतिदूत