20.साथ तेरा जो सुख आत्यन्तिक, अतीन्द्रिय और बुद्धिग्राह्य है, उस सुख का ध्यान योगी जिस अवस्था में अनुभव करता है, वह उस सुख में स्थित हुआ फिर कभी तत्त्व(बोध)से विचलित नहीं होता। भगवान श्री कृष्ण द्वारा महा आनंद के तत्व की विवेचना से अर्जुन का मन भावविभोर हो उठा। वे सोचने लगे, कितना अच्छा हो अगर मनुष्य हर घड़ी उस परमात्मा तत्व के आनंद में डूबा रहे। ध्यानमग्न रहे। श्री कृष्ण तो यह भी कहते हैं कि हमें अपना कर्म करते समय अर्थात अन्य कामकाज का संचालन करते हुए भी उस महा आनंद के बोध की अपने भीतर अनुभूति होती