पति-पत्नी दो शरीर एक प्राण नहीं

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नीलम कुलश्रेष्ठ [ किसी भी व्यक्ति के लिए विवाह बंधन ज़रूरी है लेकिन हमारे समाज की पारम्परिक मानसिकता, लालच, ईर्ष्या के कारण स्त्रियां सहज रूप से जी नहीं पातीं हैं. उन्हें अक्सर तरह तरह के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। वे अवसाद में चली जातीं हैं या जीवन से उन्हें वितृष्णा हो जाती है, यहाँ तक कि वे आत्महत्या भी कर लेतीं हैं।सबसे बड़ा उदाहरण है कि आज की अपने पैरों पर खड़ी कुछ लड़कियां अपने घर में माँ, दादी का जीवन देखकर शादी ही नहीं करना चाहतीं। आज के ग्लैमरस युग में स्थितियां कुछ तो बदलीं हैं लेकिन