प्रफुल्ल कथा - 11

  • 3.6k
  • 1.3k

चढ़ते सूरज की तरह मेरा जीवन एक -एक पायदान ऊपर चढ़ने लगा | पता ही नहीं चला कि मैं कब बच्चे से युवा हुआ , तरुण हुआ और वयस्कता की ओर बढ़ चला हूँ ! नौकरी मिलने और शादी होने और फिर बच्चे पैदा हो जाने के बाद से ऐसा लगने लगा कि अब जीवन की दुपहरिया भी तो आ चुकी है |नाचीज़ की नौकरी मिलने की कहानी आप सुन चुके हैं | कहाँ मुझे काले कोट, सफेद पैंट में कचहरी जाना था और कहाँ अब मैं अपने मनचाहे एयरकन्डीशंड प्रसारण संगठन और स्टूडियो में पदासीन था ! कहाँ हर