प्रफुल्ल कथा - 10

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मैं उन दिनों में जब कि अपनी ही आत्मकथा "प्रफुल्ल कथा “ लिख रहा हूँ और इन पन्नों द्वारा आप तक पहुंचा रहा हूँ तो यह महसूस कर रहा हूँ कि आत्मकथा लेखक के लिए यह मुश्किल होता है कि वह उस संस्थान का जिक्र अपने संस्मरण में न लाए (या कम से कम लाए ) जहां उसने जीवन के 25-30 या उससे भी ज्यादे साल गुजारे हों |आकाशवाणी में काम करने वाले तमाम प्रतिभावान लोगों ने भी जब अपनी आत्मकथाएं लिखीं तो शायद उनके सामने भी यही सवाल खड़ा हुआ होगा |मैं ऐसी आत्मकथाओं में आकाशवाणी के प्रतिबिम्बन को