फादर्स डे - 53

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लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 53 गुरुवार 16/02/2000 शेंदूरजणे गांव के रास्ते पर गाड़ी अचानक बंद पड़ गई। रास्ते के दोनों तरफ गन्ने के हरे-भरे खेत थे। सूर्यकान्त को ऐसा भ्रम होने लगा कि इन खेतों के बीच से संकेत दौड़ता हुआ उसकी ओर आ रहा है। संकेत की आवाज सुनाई देने लगी, “बचाओ, बचाओ...।” राजेंद्र कदम को कुछ सूझ नहीं रहा था। सूर्यकान्त ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। चक्कर आ जाने की वजह से वह गाड़ी का आधार लेकर खड़े होने की कोशिश कर रहा था। राजेंद्र घबरा गया। “भाऊ, तबीयत ठीक है न? ” सूर्यकान्त ने