फादर्स डे - 50

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लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 50 शनिवार -12/02/2000 संकेत का नाम ले-लेकर जिधर देखो उधर ही गपशप का दौर चलने लगा था और उस गप्पबाजी का मुख्य केंद्र संकेत और सूर्यकान्त रहता था। “ये लो...अब अमजद शेख को छोड़ दिया।” “...संकेत को क्या सच में उठाया गया है? ” “हां भाई...मुझे भी शंका ही हो रही है...” “मुझे तो पहले से ही डाउट था कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है...!” “सूर्यकान्त ने ही कहीं छुपाकर रखा होगा...।” “हो भी सकता है। इस तरह पब्लिसिटी करके राजनीति में पैर जमाने का रास्ता निकाल लिया सूर्यकान्त ने। बड़े-बड़े नेताओं से मेल-मुलाकात कर ली,