फादर्स डे - 32

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लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 32 शनिवार, 11/12/1999 साई विहार में नीरव शांति छाई हुई थी; बिलकुल वैसी ही जैसी कि युद्ध समाप्त होने के बाद रणक्षेत्र में छाई रहती है। अपनी बेगुनाही साबित होने की खुशी महसूस करने की बजाय सूर्यकान्त को दुःख हो रहा था इस बात का कि उसके परिवार ने उसके इरादों पर संदेह किया। दूसरों के लिए भी इतना आसान नहीं था, वे भी अपराधबोध से ग्रस्त थे, ‘आखिर उन्हें सूर्यकान्त के इरादे पर संदेह हुआ तो कैसे हुआ।’ लेकिन सबसे बुरी स्थिति प्रतिभा की थी। ‘मैंने अपने पति की मंशा पर शंका कैसे कर ली?