फादर्स डे - 16

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लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 16 मंगलवार, 30/11/1999 सिपाही ने थोड़ा चौंककर, घबराई हुई नजरों से अपने अधिकारी की ओर देखा। अधिकारी माने उस पर चिल्लाए, “ऐकायला येत नाही कि खोपड़ी मधे उतरत नाही?(सुनाई नहीं देता या समझ में नहीं आता?)” सूर्यकान्त चकराया हुआ-सा अपना सिर खुजला रहा था। अपहरण करने वाले की ओर से कोई खबर नहीं थी और कोई न उसके सोच-विचार का ही कोई नतीजा सामने आ रहा था। प्रतिभा लगातार रो रही थी। सौरभ भी दुःख के गर्त में गिरा जा रहा था। सूर्यकान्त इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि अपने माता-पिता से नजरें मिला